Daku Ratnakar Ki Kahani | रत्नाकर का नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा ?
हेलो दोस्तों समरीन इंस्टिट्यूट में आपका बहुत-बहुत स्वागत है आज हम आपको बताएंगे कि डाकू रत्नाकर कैसे महर्षि वाल्मीकि बना ? इसकी कंप्लीट जानकारी हम आपको इस आर्टिकल के अंदर देने वाले हैं इसीलिए आर्टिकल को पूरा ज़रूर पढ़ें ताकि आपको सही तरीके से समझ में आ सके तो चलिए शुरू करते हैं ।
Daku Ratnakar Valmiki Kaise Bane | कैसे बना डाकू रत्नाकर महर्षि वाल्मीकि ?
बहुत समय पहले की बात है कि रत्नाकर नाम का एक डाकू हुआ करता था अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए रत्नाकर डाकू चोरी लूटपाट और राहगीरों की हत्या भी करता था एक बार एक कन्या जंगल के रास्ते से पालकी में बैठकर जा रही थी घने जंगलों में डाकू रत्नाकर और उसके सभी साथी छुप कर बैठे हुए थे डाकू रत्नाकर ने कन्या का सारा धन और गहने लूटकर उसकी हत्या कर दी ।
इस घटना के बाद उस राज्य के राजा ने पूरे नगर में घोषणा करवा दी कि कोई भी राहगीर अकेला जंगलों के रास्ते नहीं जाए इसके बाद सभी लोगों को और भय का वातावरण बन चुका था हर कोई जंगल के रास्ते अकेला जाने से भय खाता था संयोग से 1 दिन देवर्षि नारद उन्हीं जंगलों से गुज़र रहे थे उन्होंने देखा कि सामने कुछ राहगीर निर्वस्त्र होकर आ रहे हैं उन्होंने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि आगे मत जाइए प्रभु अन्यथा आपको भी निर्वस्त्र होना पड़ेगा लेकिन नारद ने हंसकर आगे की ओर कदम बढ़ाया ।
हमेशा की तरह डाकू रत्नाकर ने उनका रास्ता रोका लेकिन नारद निर्भय होकर उनकी आंखों में आंखें डालकर खड़े थे यह देखकर रत्नाकर ने कहा की क्या आपको मुझसे भय नहीं लगता मैं रत्नाकर डाकू हूं श्री नारद ने कहा की तुम ही हो जो लोगों को लूटकर उनकी हत्या कर देते हो लेकिन मुझे तुमसे डर नहीं लगता और ना मैं मृत्यु से भयभीत होता हूं तब रत्नाकर गर्व से बोला क्या तुम्हें मृत्यु से डर नहीं लगता तब नारद बोले की मृत्यु से क्या डर एक दिन सबको ही मरना है लेकिन क्या तुम निर्भय हो तब रत्नाकर ने कहा कि मुझे भी किसी से डर नहीं लगता और ना ही मैं किसी से भयभीत होता हूं ।
तब नारद श्री ने हंसते हुए कहा तो तुम यहां जंगल में छुप कर क्यों रहते हो या तो तुम पाप से डरते हो या राजा से या प्रजा से जब रत्नाकर ने कहा कि मैं पापी नहीं हूं और ना मैं राजा से डरता हूं और ना ही प्रजा से मैं बस अपने परिवार का पालन पोषण करता हूं तब नारद ने कहा कि तुम अपने जिस परिवार का पालन पोषण करने के लिए जो पाप करते हो उसके भागीदार तुम स्वयं होंगे परंतु रत्नाकर ने इस बात का जवाब देते हुए कहा कि मैं यह पाप अपने परिवार के लिए करता हूं तो इस पाप के भागीदार मेरे साथ साथ मेरा परिवार भी होगा ।
तब नारद श्री ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम एक बार अपने परिवार वालों से तो पूछो कि क्या वह तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनने के लिए तैयार हैं । नारद की यह बात सुनकर रत्नाकर विचलित हो गया और उसने अपने साथियों से कहा कि इसे पेड़ से बांध दो ताकि मैं घर जाकर अपने परिवार वालों से इस बारे में पूछ कर आता हूं ताकि इस ब्राह्मण को सुकून से मार सकूं ।
रत्नाकर ने घर पहुंचकर सबसे पहले अपनी पत्नी से सवाल किया कि मैं जो कार्य कर रहा हूं क्या यह पाप है पत्नी ने कहा हां चोरी और हत्या करना पाप ही है तब रत्नाकर ने पूछा तो क्या तुम मेरे साथ में भागीदार बनोगी क्योंकि मैं यह सब तुम्हारे लिए ही करता हूं तब उसकी पत्नी ने कहा कि मैं आपके पाप में भागीदार नहीं बन सकती क्योंकि आप मेरे स्वामी है और आपका कर्तव्य बनता है कि आप हमारा पालन-पोषण करें पत्नी द्वारा यह बात सुनकर रत्नाकर अपने माता पिता के पास गया और उनसे भी यही सवाल पूछा परंतु उनके माता-पिता ने भी यही जवाब दिया कि हम तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं होंगे ।
अपने परिवार से यह बात सुनकर रत्नाकर के पांव तले ज़मीन खिसक गई और उसे बहुत पछतावा हुआ और वह नारद श्री के पास पहुंचा और उनसे क्षमा याचना करने लगा और उसने नारद श्री को बताया कि उसके परिवार वाले भी उसके पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते अब नारद श्री ने रत्नाकर से कहा की अगर तुम्हारा परिवार तुम्हारे पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता तो तुम भी उनके लिए पाप करना बंद कर दो और नारद श्री ने रत्नाकर को राम नाम का सुमिरन करने को कहा परंतु नारद के मुख से राम नाम ना निकल सका इसलिए नारद ने उसे कहा कि तुम भरा भरा शब्द का उच्चारण करो और तपस्या में लग जाओ इससे भी तुम्हारा कल्याण हो जाएगा ।
अब दर्द भरा भरा नाम का सुमिरन करता रहा और गहरी तपस्या में लग गया इसी प्रकार उसे तपस्या करते करते बहुत वर्ष बीत गए जिस कारण रत्नाकर के सारे पाप नाश हो गए और अब उसके मुख से राम राम निकलने लगा था रत्नाकर की तपस्या से प्रसन्न होकर सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी रत्नाकर के सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त करता हूं और तुम्हारे सारे पाप भी खत्म हो चुके हैं और आज से तुम्हारा एक नया जन्म हुआ है और अब तुम वाल्मीकि के नाम से जाने जाओगे और अब तुम विष्णु के अवतार राम भगवान की कथा को लिखोगे जो भविष्य में रामायण के नाम से प्रसिद्ध होगी ।
इस तरह डाकू रत्नाकर को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वह महर्षि वाल्मीकि के नाम से जाने गए तो आशा है कि आपको भी कहानी समझ में आई होगी और अच्छी भी लगी होगी ।
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